Saturday, June 14, 2014

संस्कृत विद्वानों और धर्मगुरुजनों, समाज के पतन का उत्तर तो देना होगा

संस्कृत विद्वानों तथा धर्मगुरुजानो, हिन्दू समाज सूचना युग मैं है, इसलिए मुश्किल है प्रश्नों का उत्तर न देना | यह इसलिए भी आपसबको समझ लेना चाहिए क्यूँकी आज व्यक्ति की पहुच विश्व-व्यापी है, संचार और सूचना के अनेक सोत्र हैं, इसलिए चर्चा से भागने से कष्ट, संस्कृत से सम्बंधित उन लोगो को भी होगा जो संस्कृत भाषा सीख कर अपनी जीविका चलाना चाहते हैं | कृप्या शोषणकर्ताओं का साथ देना बंद करें और सत्य को छिपाने की कोशिश नहीं करें |सूचना युग मैं यह संभव नहीं हो पायेगा |
नीचे कुछ प्रश्न हैं जिनका उत्तर अब धर्मगुरुजनों को और संस्कृत विद्वानों को देना हीहोगा :-

1. क्या पुराण कोडित इतिहास हैं, जो सदेव वर्तमान समाज की क्षमता के अनुरूप प्राचीन इतिहास का वर्णन वर्तमान समाज हित मैं करते हैं, लकिन इसी कारण से उनका दुरूपयोग समाज के शोषण के लिए भी हो सकता है ? 

2. सूचना युग मैं, और जब समाज के पास शिक्षा और सूचना दोनों हो, तो श्री विष्णु के अवतार का इतिहास, रामायण और महाभारत अलोकिक शक्ति के साथ क्यूँ समझाया जा रहा है ? अलोकिक शक्ति के साथ इश्वर अवतार का इतिहास सूचना युग मैं बताने से समाज का पतन तो निश्चित है |

3. सनातन धर्म अत्यंत प्राचीन है, और मान्यता है कि जब से पृथ्वी पर श्रृष्टि होई है, तब से है | इतना प्राचीन धर्म इसलिए संभव है क्यूँकी वोह अत्यंत सरल है, वर्तमान समाज केन्द्रित है, यानी कि वर्तमान समाज की समस्यां से सम्बंधित धर्म-आदेश और नियम बन सकते हैं, और वैसे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष इसमें कोइ नियम नहीं हैं | यह क्रमांगत उनत्ती पर आस्था रखता है, ना कि सर्जन मैं | फिर उसको अत्यंत जटिल और गूढ़ कहकर समाज का शोषण क्यूँ करा जा रहा है ? यहाँ तक तो शोषण हो रहा है कि श्री विष्णु अवतार श्री राम और श्री कृष्ण ने जो धर्म उद्धरण से समाज के लिए स्थापित करे, वोह धर्म समाज तक ना पहुच सके और उसका लाभ किसी तरह से भी समाज तक ना पहुचे, उसके लिए झूट, मक्कारी, अन्य असामाजिक प्रणालियों तक का प्रयोग हो रहा है!

4. विज्ञान से सम्बंधित कुछ विषय जो प्राचीन इतिहास के अंग बन गए हैं, वे भी पुराणों के अंग हैं , जैसे 
1) सुर और असुर;  
2) क्यूँ शिवजी ने विष गले मैं रखा, और गले के नीचे नहीं जाने दिया;  
3) कामदेव, उसका उपयोग यह समझने मैं कि श्रृष्टि कब विकास की और अग्रसर होगी और कब सिकुडेगी, और क्यूँ;  
4) तथा अन्य अनेक विषय | 
इन सब की विज्ञान के परिपेक्ष मैं समाज तक जानकारी क्यूँ नहीं पहुचने दी गयी ? चलिए मान लिया की धर्मगुरु भले ही अपने को भगवान् की तरह पुजवाते हैं, लकिन उनका ज्ञान सीमित है, लकिन संस्कृत विद्वानों ने ऐसा क्यूँ करा ? 

5. 5000 वर्ष पहले पूरे विश्व मैं एक ही धर्म था, सनातन धर्म| क्या संस्कृत विद्वानों का यह कर्तव्य नहीं है कि सनातन धर्म कैसे सिकुड़ता गया, उसका पतन कैसे हुआ, और उसमें धर्म गुरुजनों और संस्कृत विद्वानों की क्या भूमिका रही है, उसपर पूर्ण विस्तृत जानकारी समाज को दें?

6. कुछ सूचना जानबूझ कर गलत दी जा रही है, जिसका और कारण संभव नहीं है, सिर्फ समाज का शोषण ; ऐसा क्यूँ? उद्हरण 
1) मत्स्य अवतार के बारे मैं मत्स्य अवतार, मनु और उनकी नौकाओं की कैसे सहायता करते हैं, यह ‘कथा’ बताते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है की समाज तक यह सूचना नहीं पहुचनी चाहिए की युगों के बीच का अंतराल, जिसमें पृथ्वी जलमग्न रहती है और पुन्न: उत्साहित होती है , उसकी अवधी ७,२०,००० वर्ष बताई गयी है | यदी अवधी की सूचना भी पहुच जायेगी तो मत्स्य अवतार की कथा मैं छेद हो जायेंगे, समाज तक सही सूचना पहुच जायेगी | इसी तरह इन नौकाओ का नायक सदेव मनु ही क्यूँ कहलाता है, यह सूचना भी नहीं दी जाती | 
2) स्मृति और धर्म पुस्तक के अंतर को भी धुंधला करने का प्रयास करा जाता है | यदी ७,२०,००० वर्ष तक कठोर परिस्थिति मैं मानव, मजबूरी मैं समुन्द्र के उपर रहा है तो जीवित रहने के लिए जो नियम बने होंगे वे सामाजिक न्याय की तराजू मैं खरे नहीं उतरेंगे | जातीवाद मनु-स्मृति की देंन है, जो मानव की कठोर परिस्थिति मैं जीवित रहने की स्मृतियाँ हैं | जातीवाद आगे कैसे जीवित रह गया वोह धर्मगुरुजनों और संस्कृत विद्वानों को बताना होगा |
ऐसे अनेक और भी प्रश्न हैं , लकिन उत्तर नहीं है | श्रोषण बढ़ता जा रहा है, और कोइ भी जात इससे अछूत नहीं है| शोषण पूरे हिन्दू समाज का हो रहा है | 

विषय गंभीर है, जगह जगह इसपर चर्चा होनी चाहिए |

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ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.