Monday, January 28, 2013

सनातन धर्म का अति प्राचीन हो कर भी जीवित रहने का कारण

जब से पृथ्वी पर श्रृष्टि उत्पन्न होई है, तभी से सनातन धर्म भी है, परन्तु कारण क्या है कि इतना प्राचीन हो कर भी यह प्रभावी और प्रिये धर्म है...यह तो सर्व विदित है कि सनातन धर्म अत्यंत प्राचीन है, कबसे है यह, किसी को नहीं मालूम| अनुमान है कि जब से पृथ्वी पर श्रृष्टि उत्पन्न होई है, तभी से सनातन धर्म भी है| परन्तु कारण क्या है कि इतना प्राचीन हो कर भी यह प्रभावी और प्रिये धर्म है| ऐसी भी मान्यता है कि किसी भी धर्म का विश्व मैं ३००० वर्ष से ज्यादा जीवित रहना संभव नहीं है, जबकि सनातन धर्म कितना प्राचीन है, यह तक किसी को पता नहीं| लोग भावनात्मक कारण तो बताते है, कि यह धर्म इतना प्राचीन क्यूँ है, लकिन उससे तो कुछ होता नहीं; पाठकों को सही कारण चाहिये|
मैने कुछ सामाजिक वैज्ञानिको से यह प्रश्न करा; यह भी सही है, कि जिनसे करा, वोह हिंदू ही थे, लकिन आपको विश्वास दिलाता हूँ, जो विचार दिये जा रहे हैं, वे सम्पूर्ण तथ्यों के आकलन के पश्च्यात ही हैं|
सबसे पहले तो यह समझना आवश्यक है, कि धर्म तभी तक जीवित रह सकता है, जब तक उसे मानने वाला समाज जीवित है, जब धीरे धीरे जो समाज उस धर्म को मान रहा था, वोह समाप्त हो जाता है, या उसका विश्वास उस धर्म से हट जाता है, तो धर्म लुप्त हो जाता है|
कोइ भी धर्म, जैसे की सनातन धर्म, तभी अमर धर्म की श्रेणी मैं आ सकता है जब:
1. उस धर्म मैं व्यापक लचीलापन हो, और वोह धर्म इस बात को स्वीकार कर सके की श्रृष्टि की प्रगति और प्रवाह चक्रीय है, यानी की समाज का स्वरुप सदैव एक सा नहीं रह सकता| श्रृष्टि के आरम्भ मैं समाज का स्वरुप कुछ और होगा, बीच मैं कुछ और पूर्ण विकास के समय कुछ और| स्वाभाविक है कि जहाँ समाजिक धर्म भले ही सदैव एक ही रहेगा, यानी की समाज के हर वर्ग को सामान्य अवसर प्रगति के, धर्म की शिक्षा समय अनुसार बदल जायेगी| 
एक उद्धारण अत्यंत उपयुक्त रहेगा| भारत को आज़ाद हुए ६५ वर्ष हुए हैं, इससे पहले भारत करीब १००० वर्ष तक गुलाम था, तथा उस समय का सामाजिक विकास व् विज्ञानिक विकास रामायण तथा महाभारत के समय से बहुत कम था| जहाँ रामायण के समय अत्यंत आधुनिक विमान थे, और प्रलय स्वरूपि विनाश कारक अस्त्र-शास्त्रों को विघटन शुरू हो गया था(उद्धरण: शिव धनुष), वहाँ महाभारत के समय मैं विकास की सीमा का पता ही नहीं, और यह स्पष्ट है कि महाभारत युद्ध जेनेटिक इंजीनियरिंग और मानव क्लोनिंग को धर्म माना जाए या न माना जाए, इसे ले कर शुरू हुआ, लकिन विकास कितना था इसका आकलन नहीं हो पा रहा है , हालाकि चुकी समय सिर्फ ५००० वर्ष पुराना है , कुछ प्रमाण बाकी हैं, जैसे पिरामिड, तथा अन्य बहुत कुछ| स्पष्ट है कि १००० वर्ष की गुलामी मैं धर्म का प्रचार आज के धर्म के प्रचार से भिन्न होगा| 
१००० वर्ष की गुलामी के समय हमारे पास रामायण और महाभारत के समय के विज्ञान को समझने की क्षमता नहीं थी, इसलिय अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति की मिथ्या की चादर से चरित्रों को लपेट दिया गया, लकिन आज है, अत: यह आवश्यक हो जाता है कि हम रामायण और महाभारत के इतिहास को बिना चमत्कारिक और अलोकिक शक्ति के समझे और हिंदू समाज की प्रगति का मार्ग सु-निश्चित करें| इसी लचीलेपन के कारण सनातन धर्म अब तक जीवित है|
2. उचित नियंत्रण और संतुलन : यह अति आवश्यक है, इसके बिना कोइ धर्म लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकता| समय के साथ साथ हर समुदाए मैं अनेक अनियमितताओं के कारण कुछ कमियां आ जाती हैं, समाज का शोषण होने लगता है| प्रमाणित आंकडो के तहेत इनका आंकलन आवश्यक हो जाता है| इसका सबसे बड़ा उद्धारण है समाज के हर वर्ग मैं बढ़ता हुआ असंतोष, आज जो भ्रष्ट है वही धार्मिक कहला रहा है, वही समाज को नियंत्रित कर रहा है; तो कहाँ है सनातन धर्म? बिना नियंत्रण और संतुलन के तो कोइ समाज उनत्ति कर नहीं सकता, अनियमितताओं से समाज कैसे निबटेगा?लकिन इन सब का नियंत्रण करने के लिए कोइ भी सनातन धर्म संगठन समाज की देख रेख और उनत्ति के लिये उपलब्ध नहीं है| 
यह आज़ाद भारत के हिंदू समाज का दुर्भाग्य है|
3. धर्म की हानि के लिये आवश्यक है धर्म गुरुजानो का अधर्म मैं लिप्त रहना :इसके लिये काफी विस्तार से विभिन्न पोस्टों मैं पहले ही चर्चा हो चुकी है| विस्तृत जानकारी के लिये यह पोस्ट पढ़ सकते हैं :
जैसा कि आपको इन पोस्टों को पढ़ कर विदित हो जाएगा, कि सारे पुराण भरे पड़ें हैं, ऋषि, महाऋषियों, और देवताओ के अनैतिक व्यवाहरों के विवरण से| कोइ तो कारण होगा कि कोइ भी पुराण अछुता नहीं हैं इनसे| स्पष्ट है की एक साफ़ सन्देश सनातन धर्म दे रहा है, कि धर्म की हानि जब जब होई है, धर्म संचालक उस हानि के प्रमुख कारण थे |

इसका अर्थ यह नहीं है कि साधू-संतो और गुरुजानो का अनादर होना चाहिए; नहीं उचित नियंत्रण और संतुलन समाज मैं आवश्यक है|
4. अवतार और ईश्वरीय शक्ति: यह ‘धर्म मैं व्यापक लचीलापन’ के तहेत भी रखा जा सकता था, परन्तु विषय इतना विशेष है, कि यह अलग ही ठीक रहेगा| सनातन धर्म मानता है कि जब धर्म की विशेष हानि होती है, तो स्वंम इश्वर पृथ्वी पर अवतरित होते है, और अवाश्यक सुधार लाते हैं| इसमें भी लचीलापन है, जो की समझने लायक है| 
जब समाज कम विकसित और शिक्षित होता है, तो अवतार के रूप मैं आये भगवान, ने जो वास्तविक धर्म स्तापित करें, वे नहीं बताए जाते, क्यूँकी समाज उनका लाभ नहीं ले सकता, न ही समाज उन्हे समझ सकता| संभवत: यह भी सोच रही होगी की समाज के शोषण की संभावना बढ़ जायेगी; खैर, यह विषय शोघ का है| परन्तु सनातन धर्म मैं आवश्यक नियम है, कि :-
जब समाज कम विकसित होता है, तब अवतार को चमत्कारिक और अलोकिक शक्तियुओं से सुसज्जित कर दिया जाता है, और सही धर्म भी जो अवतार ने स्थापित करें हैं, वोह नहीं बताए जाते, बलिक भावनात्मक धर्म बता कर समाज को भक्ति की और पूरी तरह से मोड देते हैं| उससे समाज के पूर्ण विनाश के खतरे कम हो जाते हैं|
इसका जीता जागता उद्धारण है, हिंदू समाज की अभी हाल की १००० वर्ष की गुलामी, जिसमें समाज पर जबरदस्त धर्म परिवर्तन का संकट था, तो धर्म का कर्म भाग घटा कर समाज को पूरी तरह से भावनात्मक बना दिया गया, और भक्ति की तरफ मोड दिया|

अफ़सोस यह है की आजादी के बाद इसका ठीक विपरीत होना था, जो की नहीं हुआ, क्यूँकी नियंत्रण और संतुलन स्थापित करने के लिए कोइ संगठन हिन्दुओ को स्वम् धर्म गुरुजानो ने नहीं बनाने दिया, और मजेदार बात यह है कि हिंदू समाज का शोषण धर्म गुरुजन ही कर रहे हैं|

1 comment :

Raghunath Singh Ranawat said...

शुभकामनाए के साथ जय श्री कृष्ण

ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.