Monday, January 30, 2012

क्या स्वर्ग में बैठे देवता मनुष्यों के तप से घबरा जाते हैं

जब समाज पतन की और बढ़ता है तो इन धार्मिक गुरुजनों का हाथ अवश्य होता है|हर बार तो प्रभु अवतार ले नहीं सकते; और स्तिथी इतनी खराब भी नहीं हो सकती कि उसे सुधार न जाय, तथा प्रभु को अवतार लेना पड़े
ऐसे अनेक प्रसंग हैं कि देवता, मनुष्य के तप से घबरा जाते हैं, और इसी बात से यह कहावत भी आम है कि इन्द्र का सिंघासन डोल गया| क्या इसमें कुछ सचाई है ? क्या वास्तव में तप को खंडित करने के लीये अप्सरा भेजी जाती हैं ?
इस प्रश्न के उत्तर से पूर्व तप की परिभाषा क्या होनी चाहीये, इसपर जरा सोच लें| हिंदू शास्त्रों में 'सामूहिक कठोर प्रयास' को यज्ञ कहा जाता है ओर 'व्यक्तिगत कठोर प्रयास' को तप ! तप का अर्थ हर समय आँख बंद करके इश्वर में लीन होना नहीं है; तप का अर्थ है व्यक्तिगत कठोर प्रयास |

यदि व्यक्ति पूरी निष्ठां और सकारात्मक भाव से किसी भी धार्मिक कार्य में यथाशक्ति प्रयत्नशील है , तो वह नियति में भी परिवर्तन कर देता है, तथा हर धर्म किसी न किसी रूप में इसको स्वीकार करता है | हर मनुष्य की स्वंम की ऊर्जा होती है, जो की पृथ्वी की उर्जा से सकारात्मक या नकरात्मक स्थर पर संबंध स्थापित करती है | पृथ्वी की उर्जा का संबंध सदा सौर मंडल की उर्जा से रहता है, और सौर मंडल का ब्रह्मांड से | धार्मिक कार्य चुकि समाज के लीये लाभकारी होता है, समस्त विश्व की उर्जा उसका सत्कार करती है तथा उस तप को प्रतिष्टित करने में सकारात्मक भाव रखती है | इसी लीये महान पुरुष के कार्य के साथ अनेक दन्त कथा जुड जाती हैं, तथा उस तप को अलोकिक रूप दे देती हैं |

इसी सन्दर्भ में यह भी समझ लें कि नकरात्मक ऊर्जा क्लेशवर्धक होती है | जब समाज में अधिकाँश व्यक्ति कर्महीन होते हैं तो क्लेशवर्धक ऊर्जा समाज को विनाश की और ले जाती है ! येही हिन्दुस्तान में हो रहा है ! एक छोटा सा उद्धारण उपयुक्त रहेगा |

हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र है, अथार्त समस्त अधिकार समाज के पास हैं| आजादी के ६४ वर्ष में भ्रष्टाचार बढ़ा है, और वह जब, जब की ९८ % लोग भ्रष्ट नहीं हैं,  तथा जो २ % भ्रष्ट लोग हैं वह भी कह रहे हैं कि भ्रष्टाचार समाप्त होना चाहीये, लेकिन भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है| क्या यह हमारी कर्महीनता की नकरात्मक उर्जा का प्रभाव नहीं है , कि हम प्रजातंत्र के बाद भी,  तथा जहां १०० % हिन्दुस्तान यह कह रहा है कि भ्रष्टाचार समाप्त करने हेतु तत्काल रचनात्मक कार्य होने चाहीये, भ्रष्टाचार बढता जा रहा है  ?
पहला सन्देश:
‘इन्द्र का सिंघासन डोल गया’ से यही है | कहानी किस्सों की पीछे  अनेक महत्वपूर्ण सत्य छिपे हुए हैं, इसलिए सीधे आप यह समझ लें की देवता सकारात्मक उर्जा के प्रतीक हैं, और उनके राजा का सिंघासन तभी डोलेगा, जब समाज कर्महीन हो जाएगा, नकारात्मक हो जाएगा |

अब इसी से दूसरा सन्देश(उपचार से सम्बंधित है)
परन्तु हर पुराण में देवताओं के स्वंम के नकरात्मक विचार कुछ और सन्देश भी दे रहे हैं , जो अत्यंत महत्त्वपूर्ण है| ध्यान रहे समस्त पुराण देवों के नकरात्मक व्यवाहर से भरे पडे हैं, ताकी किसी त्रुटि की कोइ संभावना न रहे , महाऋषि और ऋषिजनों के अभ्रद तथा शोषणपूर्ण व्यवाहर का भी रह रह कर उल्लेख पुराणों में मिलेगा |  

इन महान हस्तियों द्वारा महिलाओं के साथ दुराचार और छल के व्यवाहर के भी अनेक प्रसंग हैं |  इन प्रसंगों का वर्तमान समाज के लीये कुछ तो महत्त्व है, कोइ महत्वपूर्ण सन्देश है, जो अगर अनकहा रह गया तो समाज का विकास संभव नहीं हो सकता |  एसा भी नहीं है कि उसके लीये विशेष दूरदर्शिता की आवश्यकता है| 

कोइ भी व्यक्ति इसका इतना अर्थ तो निकाल सकता है कि समाज में, जो अधर्म के कारण,  कर्महीनता बस गई है वह इस लीये की गलत धर्म सिखाया जा रहा है |  तथा इसका प्रमाण भी है, एक ऐसा प्रमाण जिसे नकारा नहीं जा सकता |

हिंदू समाज का आजादी के बाद धर्म और धर्म सम्बंधित कार्यों में वय अत्यधिक बढा है , परन्तु इसके बाद भी हिंदू समाज में गरीबी बढ़ी है , जबकी धार्मिक गुरुजनों की आर्थिक व् सामाजिक स्तिथी में जबरदस्त सुधार आया है ! राजनीती में उनका गहरा प्रभाव है| हर तरह से शक्तिशाली हैं हमारे धार्मिक गुरुजन , और टूटने के कगार पर खडा है हिंदू समाज |

पुराण और प्राचीन इतिहास का सन्देश स्पष्ट है | समय समय पर जब समाज पतन की और बढ़ता है तो इन धार्मिक गुरुजनों का हाथ अवश्य होता है | परन्तु हर बार तो प्रभु मनुष्य अवतार ले नहीं सकते ; या यूँ कहिये कि हर बार स्तिथी इतनी खराब भी नहीं हो सकती कि उसे सुधार न जाय, तथा प्रभु को अवतार लेना पड़े |

निर्णय समाज में हर शिक्षित व्यक्ति को लेना है , क्यूँकी जब सब अपने आस पास इस विषय पर निरंतर चर्चा करेंगे तो परिणाम समाज हित में होगा | यह मत सोचिये कि में क्यूँ करूँ , बाकी सब लोग हैं करने के लीये |अपनी कर्महीनता से युद्ध हर व्यक्ति को स्वंम आरम्भ करना होगा, ताकी आने वाली पीढ़ी दुबारा गुलाम न हो सके |

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ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.